“पति का नाम क्यों नहीं ले रही हो? इतनी क्या क्रांति करनी है घर पर? शादी-शुदा लड़कियां पति के नाम से ही जानी जाती हैं। शादी के बाद नाम बदलना ही पड़ता है।”
आपने भी ऐसी बातें सुनी होंगी, चाहे अपने लिए या किसी और के लिए। जो औरतें शादी के बाद अपना नाम नहीं बदलतीं, समाज उनको अक्सर ऐसी बातें सुनाता है। क्योंकि यह तो भारतीय परंपरा है ना? और परंपरा के खिलाफ जाना मतलब रिश्तों के खिलाफ जाना, अपने परिवार को ठुकराना, और एक “बुरी औरत” कहलाना। ऐसी ही एक औरत होने का नाते, मुझे भी बातें सुनने को मिलीं। आठ साल के बाद भी, कुछ लोग अपने आप ही मान लेते हैं की मैंने अपने पति का नाम अपने नाम के साथ जोड़ लिया होगा। पर ऐसा नहीं है।
कई बार, मेरे नाम के आगे Mrs लगा दिया जाता है जबकि हर सरकारी कागज़ पर मेरे नाम के आगे Ms है। पर लोगों की भी इसमे गलती कहाँ है? यह “परंपरा” इतनी सामान्य है भारत में की सबको लगता है की शादी के बाद नाम बदलना कानून में लिखा है। ना यह अभी कानून है, ना स्वतंत्र भारत में कभी था। 2008 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह साफ-साफ घोषित किया था की औरतों को शादी के बाद अपना नाम बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है। और यह भी ज़रूरी नहीं है की शादी-शुदा औरतों के नाम के आगे Mrs लगाया जाए।
तो क्यों मानते हैं हम इस प्रथा को? इतिहास क्या है इसके पीछे?
शादी के बाद नाम ना बदलने से क्या आप भारतीय संस्कार के खिलाफ जा रहीं हैं?
जी नहीं! बल्कि आप असली भारतीय परंपरा की ओर जा रहीं हैं। क्योंकि शादी के बाद नाम बदलने की प्रथा अंग्रेजों के द्वारा पूरे देश में फैलाई गई थी। और आज कल तो अंग्रेजों की हर निशानी मिटाने पर ज़ोर है, तो आप देशभक्त हो गईं अगर आपने इस प्रथा को नहीं अपनाया। हाँ, कुछ ऐसे वर्ग हैं, खासकर महाराष्ट्र में, जिनमें शादी के बाद औरत का पूरा नाम बदल दिया जाता है, सिर्फ सरनेम नहीं। पर यह उनकी अपनी परंपरा है, और वह भी नहीं कहते की यह कानून है।
चाहे आप मानें या ना मानें, शादी के बाद पति का नाम लेना एक अंग्रेजी प्रथा है।
सरनेम बदलकर औरतों पर हक जमाना
इस प्रथा का इतिहास आपको मिलेगा अंग्रेजों के ‘लॉ ऑफ कोवर्चर’ में। इस कानून के मुताबिक, औरतें पहले अपने पिता की प्रॉपर्टी होती हैं और फिर अपने पति की। इस कानून में यह लिखा गया था की पति और पत्नी को एक माना जाएगा पर वह दोनों पति के नाम से पहचाने जाएंगे। इसीलिए औरतें मजबूर थीं अपने पति का नाम लेने के लिए। इस कानून में यह भी लिखा गया था की औरतें अपना खुद का बिज़नेस नहीं चला सकतीं हैं और अपने नाम पर घर या कोई भी और प्रॉपर्टी नहीं ले सकतीं। अपने पति या पिता के बिना, औरतें कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकतीं और किसी भी तरह का कान्ट्रैक्ट नहीं साइन कर सकतीं। अपने खुद के बच्चों पर भी औरतों का कोई हक नहीं था और, अगर तलाक हुआ, वह अपने बच्चों से मिल भी नहीं सकती थीं।
जब अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ, उनके कानून हमारे कानून बन गए। और साथ में, शादी के बाद नाम बदलने की प्रथा शुरू हुई।
अंग्रेज़ हो या भारतीय, मर्दों को हमेशा से लगता आया है की वह औरतों का भला-बुरा खुद ही तय कर सकते हैं
भारत में अंग्रेजों के आने से पहले, कई समाजों में माता के नाम से लोग जाने जाते थे, ना की पिता के नाम से। और परिवार इसी तरह, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, चलते थे। पर अंग्रेजों को यह सिस्टम नहीं समझ आया। तो उन्होंने ने अपना सिस्टम लागू करना शुरू कर दिया। और उनके हिसाब से, पिता और पति का ही नाम इस्तेमाल होना चाहिए था, ना की माँ और पत्नी का। अपनी ज़िंदगी आसान करने के लिए, अंग्रेजों ने हमारी एक खूबसूरत परंपरा का गला घोंट दिया। और हमें देखिए, हस्सी-खुशी उस “परंपरा” को 2023 में भी अपना मान रहें हैं।
कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है की अंग्रेज़ी औरतें, जो उस वक्त अपनी खुद की लढाई लढ़ रहीं थीं, और “ऊंची जाती” के भारतीय मर्द यह मानते थे की अंग्रेज़ों के बिना, भारतीय औरतें पीढ़ित ही रहेंगी। की उन्हे अंग्रेज़ी शासन की ज़रूरत थी आज़ाद होने के लिए। ऐसा नहीं है की अंग्रेज़ों से पहले, भारतीय औरतें मज़े में रहती थीं। पर अंग्रेज़ों की दी गई “आज़ादी” एक नई कैद जैसी थी।
तो क्या मानना है आपका? शादी के बाद औरतों का नाम बदलना ज़रूरी है या फिर अपने नाम का निर्णय औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए?
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