“धन पिरु ऐहि न आखीअनि बहनि इकट्ठे होए || एक जोति दुइ मूर्ती धन पिरु कहीऐ सोए“ – गुरु अमर दास जी
सिक्ख धर्म के अनुसार, आनंद कारज दो लोगों का खूबसूरत मिलन है। आनंद कारज गुरुद्वारे में किया जाता है। और हिन्दू विवाह रीति की तरह, आनंद कारज में भी फेरे अहम होते हैं। लावाँ फेरों में चार शबद गाए जाते हैं और हर शबद शादीशुदा ज़िंदगी के एक हिस्से के बारे में बताता है।
यह चार शबद श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में पाए जाते हैं और गुरु राम दस जी द्वारा लिखे गए हैं। हर लावाँ का एक अलग मतलब होता है और वह दो लोगों का मिलन दिखाते हैं भगवान के सामने। सम्पन्न होने पर, आनंद कारज को आत्मा और परमात्मा का मिलन माना जाता है।
पहली लावाँ
“हर पहलड़ी लाव परवीरती कर्म दरीरईया बल राम जिओ”
पहली लाव शादी की रस्म को शुरू करती है और इस संबंध की पवित्रता बतलाती है। यह जोड़ी को याद दिलाती है की वह अपने वैवाहिक कर्तव्य पूरे करें, बुरी आदतें छोड़ें, और भगवान का नाम जपें। पहली लाव कहती है की कठिनाई के सामने भी, जोड़ी को सही रास्ता नहीं छोड़ना है और वाहेगुरु की इबादत करनी है। इसी रास्ते पर उन्हे सुख प्राप्त हो सकता है।
दूसरी लाव
“हर दूजड़ी लाव सतगुर पुरख मिलाया बल राम जिओ”
दूसरी लाव जोड़ी को असल गुरु से मिलाती है। यह जोड़ी को सिखाती है की उन्हे अपने अहम को त्याग कर, गुरु का नाम जपना है। गुरु सर्वभूत है और उनके अंदर और उनके आस-पास है। इस लाव में जोड़ी को बताया जाता है की वक्त चाहे अच्छा हो या बुरा, गुरु का नाम नहीं भूलना चाहिए।
तीसरी लाव
“हर तीजड़ी लाव मन छाओ भय बैरागिया बल राम जिओ”
तीसरी लाव में जोड़ी के मन में बसे गुरु के प्रति प्रेम के बारे में बताया जाता है। इस लाव में, गुरु नानक जी कहते हैं की जोड़ी के मन और दिल में भगवान के प्रति प्रेम होना चाहिए।
चौथी लाव
“हर चौथड़ी लाव मन सहज भय हर पाया बल राम जिओ”
चौथी लाव कहती है की अब दूल्हा और दुल्हन आत्मा से जुड़ चुके हैं और दुल्हन को अपना घर छोड़कर, दूल्हे के घर जाना होगा अपनी नई ज़िंदगी शुरू करने। इस लाव के बाद जोड़ी को पति-पत्नी का दर्जा दिया जाता है।
लावाँ फेरों के बाद, अंत में, अरदास होती है जो रस्म को पूरा करती है।
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